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“कृष्ण कुंज के लिए लाई गई भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापना के इंतज़ार में, जमीन में रख भूला विभाग”


मनेन्द्रगढ़।

एक समय छत्तीसगढ़ सरकार की बहुप्रचारित “कृष्ण कुंज” योजना अब प्रशासनिक लापरवाही और विभागीय उदासीनता का प्रतीक बनती जा रही है। मनेंद्रगढ़ वन परिक्षेत्र कार्यालय में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति कई महीनों से जमीन पर पड़ी हुई है। न तो उसकी स्थापना हो रही है और न ही कोई अधिकारी इस ओर ध्यान दे रहा है।

यह मूर्ति उस “कृष्ण कुंज” योजना के अंतर्गत लाई गई थी, जिसे पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार ने पर्यावरण संरक्षण, आयुर्वेदिक पौधों के संरक्षण और बच्चों के मनोरंजन स्थल के रूप में एक प्रेरक पहल के तौर पर शुरू किया था। मनेंद्रगढ़, झगड़ाखांड, नई लेदरी और खोंगापानी जैसे स्थानों में इन हरित स्थलों का विकास किया गया। लेकिन जब योजना की “आत्मा” कहे जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण की ही मूर्ति जमीन पर लावारिस अवस्था में पड़ी हो, तो पूरी योजना पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

पूर्व विधायक गुलाब कमरो का तीखा प्रहार

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इस विषय पर पूर्व विधायक गुलाब कमरो ने भाजपा और वन विभाग पर सीधा हमला करते हुए कहा,

> “भाजपा सिर्फ भगवान के नाम पर वोट मांगती है, लेकिन उनके दिखाए मार्ग पर चलना नहीं जानती। मूर्ति ज़मीन पर पड़ी है, ये श्रद्धा नहीं, सियासत है।”

गुलाब कमरो ने कहा कि यह सिर्फ एक मूर्ति का मामला नहीं, बल्कि जनता की आस्था का अपमान है। उन्होंने वनमंडल अधिकारी (DFO) मनीष कश्यप पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए और कहा कि:

“जब से मनीष कश्यप डीएफओ बने हैं, मनेंद्रगढ़ वन मंडल भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है। उन्हें पेड़ों की अवैध कटाई और तस्करी से फुर्सत नहीं, भगवान कृष्ण की मूर्ति की क्या चिंता?”

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि शीघ्र ही मूर्ति की विधिवत स्थापना नहीं हुई, तो इसे जनता की आस्था के साथ धोखा माना जाएगा।

  • क्या थी ‘कृष्ण कुंज’ योजना?
  • योजना: एक एकड़ शासकीय भूमि पर हरित क्षेत्र का विकास।
  • उद्देश्य:
  • प्रदूषण नियंत्रण
  • आयुर्वेदिक पौधों का संवर्धन
  • बच्चों के लिए हरित मनोरंजन स्थल
  • धार्मिक-सांस्कृतिक चेतना का संचार
  • इस योजना को भूपेश बघेल सरकार की छत्तीसगढ़ी संस्कृति और स्वास्थ्य के समन्वय की दूरदर्शी पहल माना गया था।
  • अब उठते हैं ये गंभीर सवाल:
  • क्या वन विभाग की प्राथमिकता में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति नहीं है?
  • क्या योजनाओं की आत्मा, सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित रह गई है?
  • क्या सत्ताधारी दल और प्रशासन इस उपेक्षा को नवाचार समझ बैठे हैं?
  • और क्या जनता की श्रद्धा का इसी तरह खुलेआम अपमान होता रहेगा?

संवेदनशील धार्मिक प्रतीकों और जनभावनाओं की अनदेखी क्या योजनाओं की सफलता की गारंटी हो सकती है?

अब यह देखना शेष है कि क्या वन विभाग और प्रशासन चेतते हैं, या यह योजना भी उपेक्षित मूर्ति की तरह इतिहास के किसी कोने में दबी रह जाएगी

संपादक : नत्थू  पयासी 

रिपोर्ट: भखार न्यूज़ 


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