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बारिश में बेघर हुआ परिवार: नई लेदरी में एसईसीएल-राजस्व विभाग की कार्रवाई पर गरमाई राजनीति, पूर्व विधायक गुलाब कमरों ने जताई नाराजगी


नई लेदरी, 4 जुलाई 2025।
नगर पंचायत नई लेदरी में शुक्रवार को एसईसीएल और राजस्व विभाग द्वारा चलाए गए अतिक्रमण हटाओ अभियान ने मानवीय संवेदनाओं को झकझोर दिया। तेज बारिश के बीच एक परिवार को घर से बेदखल कर दिया गया, जिससे छोटे-छोटे बच्चे और नातिन समेत पूरा परिवार सड़क पर आ गया। घटना के बाद इलाके में आक्रोश फैल गया, वहीं पूर्व विधायक गुलाब कमरों ने प्रशासनिक कार्रवाई को “अमानवीय” करार देते हुए कड़ी आपत्ति जताई।

जानकारी के अनुसार, यह कार्रवाई एसईसीएल की संपत्ति खाली कराने के उद्देश्य से की गई। प्रशासनिक टीम ने समारू नामक व्यक्ति के मकान को खाली कराते हुए घर में मौजूद मासूम बच्चों और महिलाओं को भी बाहर निकाल दिया। तेज बारिश के बीच उनका सारा सामान सड़क पर रख दिया गया।

स्थानीय निवासियों ने बताया कि प्रभावित परिवार को न तो कोई पूर्व सूचना दी गई और न ही वैकल्पिक आश्रय की व्यवस्था की गई थी। छोटे बच्चों को भीगते हुए देखकर लोग भावुक हो उठे और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाए।

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गुलाब कमरों बोले — “यह अमानवीय और असंवेदनशील है”
घटना की जानकारी मिलते ही भरतपुर-सोनहत के पूर्व विधायक गुलाब कमरों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा —
“बारिश के बीच लोगों को बेघर करना अत्यंत दुखद और अमानवीय है। भाजपा सरकार के शासन में गरीबों को लगातार उजाड़ने की घटनाएं सामने आ रही हैं। प्रशासन को कम से कम बरसात के समय में तो मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।”

उन्होंने प्रशासन से तत्काल ऐसी कठोर कार्रवाइयों पर रोक लगाने, और प्रभावित परिवार को अस्थायी आश्रय व राहत सहायता देने की मांग की।

स्थानीय लोगों में आक्रोश
कार्रवाई के बाद नई लेदरी के लोगों में नाराजगी स्पष्ट दिखाई दी। लोगों का कहना था कि इस तरह की कार्रवाई, वह भी बारिश के मौसम में, सीधे तौर पर बच्चों और बुजुर्गों के जीवन से खिलवाड़ है। प्रशासन को संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई करनी चाहिए।

पूर्व विधायक की चेतावनी
गुलाब कमरों ने प्रशासन से भविष्य में इस तरह की अमानवीय कार्रवाई रोकने की अपील करते हुए चेतावनी दी कि यदि इस पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो जनता के साथ मिलकर बड़ा आंदोलन किया जाएगा।


यह घटना न केवल सरकारी मशीनरी की असंवेदनशीलता को उजागर करती है, बल्कि मानवीय मूल्यों की भी परीक्षा लेती है। सवाल यह है कि विकास और कानून व्यवस्था की आड़ में क्या आम आदमी की पीड़ा को नजरअंदाज किया जा सकता है?


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